What is URL in Hindi | URL क्या होता है? – Components और Structure की पूरी जानकारी

What is URL in Hindi | URL क्या होता है?: इंटरनेट की दुन‍िया में हम रोज़ाना कई वेबसाइट्स पर जाते हैं। चाहे आप गूगल पर कुछ भी सर्च करें या सीधे एड्रेस बार में वेबसाइट का नाम डालें – एक चीज़ जो आपके हर एक्शन के पीछे होती है, वो है URL। क्या आपने कभी सोचा है कि URL की असलियत क्या है? URL का काम कैसे होता है? चलिए, इसे सरल भाषा में समझते हैं।

What is URL in Hindi | URL क्या होता है?

URL का पूरा नाम है Uniform Resource Locator। साधारण शब्दों में कहें तो URL एक एड्रेस होता है, जो हमें किसी वेबसाइट या ऑनलाइन रिसोर्स तक पहुँचने में मदद करता है। जैसे हम एक चिट्ठी भेजते समय एड्रेस लिखते हैं, ठीक वैसे ही जब आपको किसी वेबसाइट या फाइल तक पहुँचना होता है तो ब्राउज़र को भी एक एड्रेस चाहिए होता है। यही एड्रेस URL कहलाता है।

URL में चार मुख्य घटक होते हैं:

  1. प्रोटोकॉल (जैसे: HTTP, HTTPS)
  2. डोमेन नेम (जैसे: google.com, facebook.com)
  3. पोर्ट नंबर (सामान्यत: HTTP के लिए 80, HTTPS के लिए 443)
  4. रिसोर्स या फाइल पाथ (जैसे: /search/results)

इन सभी घटकों का सही तरीके से संयोजन होता है ताकि आप सही सर्वर और सही संसाधन तक पहुँच सकें।

डोमेन नाम: आसान पहचान

क्या आपने कभी सोचा है कि वेबसाइट्स के नाम याद रखना कितना आसान होता है, जबकि उनका असल एड्रेस यानी IP एड्रेस याद रखना बेहद मुश्किल है? उदाहरण के तौर पर, facebook.com के बजाय अगर आपका URL कुछ ऐसा होता – 192.168.1.1 तो कैसा लगता? इसी परेशानी का हल है डोमेन नेम। यह टेक्स्ट-बेस्ड नाम याद रखना बहुत आसान होता है, जो अपने पीछे एक IP एड्रेस छिपाए हुए होता है।

डोमेन नाम का काम है आसान शब्दों में सर्वर के IP एड्रेस को बदलना। जब आप ब्राउज़र में कोई डोमेन नाम लिखते हैं, तब डोमेन नेम सर्वर (DNS) उसे उसके संबंधित IP एड्रेस में बदल देता है और फिर ब्राउज़र उस IP एड्रेस पर अनुरोध भेजता है।

URL के मुख्य घटक

1. प्रोटोकॉल

URL में सबसे पहला हिस्सा बताता है कि ब्राउज़र और सर्वर के बीच कम्यूनिकेशन कैसे होगा। आमतौर पर वेबसाइट्स के लिए HTTP या HTTPS का इस्तेमाल होता है। HTTPS का इस्तेमाल तब किया जाता है जब सिक्योरिटी प्रमुख हो, ताकि डेटा एन्क्रिप्टेड रहे।

2. डोमेन नेम

डोमेन नेम वह हिस्सा होता है जिसे हम याद रखते हैं, जैसे कि google.com या facebook.com। यह हिस्सा हमे सर्वर की IP एड्रेस से जोड़ता है। बिना IP एड्रेस के, सर्वर से संपर्क करना असंभव है, और डोमेन नेम हमें IP याद रखने की जगह आसान नाम मुहैया कराता है।

3. पोर्ट नंबर

सर्वर एक विशेष पोर्ट पर सुनते हैं। HTTP के लिए बाय डिफॉल्ट पोर्ट 80 इस्तेमाल होता है और HTTPS के लिए 443। कभी-कभी पोर्ट नंबर विशेषतौर पर लिखा भी होता है, जैसे example.com:8080, जहाँ 8080 पोर्ट नंबर होता है।

4. पाथ और क्वेरी पैरामीटर

जब आप किसी वेबसाइट के एक विशेष पेज पर जाना चाहते हैं, तो आपको यूआरएल में पाथ और क्वेरी पैरामीटर मिलते हैं। उदाहरण के तौर पर, example.com/search?q=file में /search वह पाथ है और q=file वह क्वेरी है जिसे सर्च इंजन को भेजा जाता है। इनका उपयोग डेटा भेजने और रिसोर्स की पहचान के लिए होता है।

डोमेन के विभिन्न स्तर

डोमेन नेम कई स्तरों में विभाजित होते हैं। आइए इनको समझें:

1. टॉप-लेवल डोमेन (TLD)

इसे आप डोमेन नाम के आखिरी हिस्से के रूप में जानते हैं, जैसे .com, .org, .in। ये इंटरनेट पर मौजूद हर वेबसाइट का सबसे ऊपरी हिस्सा होते हैं, जो यह बताते हैं कि वेबसाइट की प्रकृति क्या है (व्यावसायिक, शैक्षिक, सरकारी आदि)।

2. सेकंड-लेवल डोमेन (SLD)

यह डोमेन का प्रमुख हिस्सा होता है, जैसे कि google, facebook, twitter। यही वह नाम होता है जिसे लोग वेबसाइट की पहचान के लिए जानते हैं।

3. सबडोमेन

इसके साथ वेबसाइट के अलग-अलग हिस्सों को दर्शाया जाता है। जैसे mail.google.com में mail एक सबडोमेन है। कई बार इस्तेमाल किया जाता है जब वेबसाइट के विभिन्न हिस्सों को अलग करना हो।

URL का आरएससी डॉक्यूमेंट

URL के काम करने के नियम पहली बार 1994 में टिम बर्नर्स-ली ने तय किए थे। इस नियम को RFC 1738 में दस्तावेज़ित किया गया था। इसमें URL के सभी कंपोनेंट्स का विस्तृत विवरण है। हर वेब डेवलपर को यह जानना चाहिए क्योंकि URL का सही तरीके से उपयोग करके ही सही वेब पेज तक पहुँच संभव है।

URL और वेब पेज कैसे कनेक्ट होते हैं?

जब आप ब्राउज़र में कोई URL डालते हैं, तो सबसे पहले DNS (डोमेन नेम सर्वर) उस डोमेन नेम को संबंधित IP में बदलता है। इसके बाद ब्राउज़र उस IP एड्रेस पर रिक्वेस्ट भेजता है, जिसे सर्वर रिसीव करता है और बताए गए पेज या फाइल को वापस भिजवाता है। इसमें सभी चार घटक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

कुछ जरूरी बातें

  • HTTP एक असुरक्षित प्रोटोकॉल होता है, जहाँ डेटा एन्क्रिप्ट नहीं होता।
  • HTTPS सिक्योरिटी प्रोवाइड करता है और सेंसिटिव जानकारी, जैसे पासवर्ड, को सुरक्षित रखता है।
  • URL के विभिन्न कंपोनेंट्स जैसे स्कीम, होस्ट, पाथ, क्वेरी ऑप्शनल होते हैं लेकिन इनका सही उपयोग वेबसाइट तक आसान पहुँच सुनिश्चित करता है।

निष्कर्ष

URL न केवल एक वेबसाइट तक पहुँचने का माध्यम है, बल्कि वह पथ है जो इंटरनेट की गहराई में एक छिपी हुई फाइल तक हमे सुरक्षित और तेजी से ले जाता है। हर घटक, चाहे वह प्रोटोकॉल हो, डोमेन नेम हो या पाथ, अपनी जगह बेहद महत्वपूर्ण है। यदि आप वेब डेवलपमेंट में आना चाहते हैं, तो URL का ज्ञान होना आपके लिए अहम कदम हो सकता है।

अगर इस लेख से संबंधित आपको कोई सवाल हो, तो टिपणी में ज़रूर पूछें!

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